Sunday, January 25, 2009
करूँ ना याद मगर ...
करूँ ना याद मगर .. किस तरह भूलाऊं उसे ...
गझल बहाना करूँ... और गुनगुनाऊ उसे....
वो खार खार है शाखे गुलाबकी मानिंद...
मैं जख्म जख्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे...
- फ़राज़
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