Saturday, February 16, 2008

आह को चाहिए...

आह को चाहिए इक 'उमर असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होणे तक ?

दाम हर मौज में है हल्क-ए-साद-काम-ए-नहण्ग
देखे क्या गुज़रे है कत्रे पे गुहार होणे तक

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर होणे तक ?

हम्ने माना के तघःफुल ना करोगे, लेकिन
खाक हो जायेगे हं तुम्को खबर होने तक

परताव-ए-खूर से है शब्नं को फना'अ की तालीम
मैं भी हून इक इनायत की नझर होने तक

याक_नझर बेश नहीं फुर्सत-ए-हस्ती घाफील
गर्मी-ए-बज़म है इक रक्स-ए-शरार होणे तक

गम-ए-हस्ती का 'असाद' किस'से हो जुज़ मर्ज इलाज़
शम्मा'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक

- मिर्झा गालिब

1 comment:

Anonymous said...

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